Saturday, December 24, 2016

Guru Shishya Story in hindi – Guru Shishya – Jeewan aur Mrityu ka swami

Guru Shishya Story

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जीवन एवं मृत्यु का स्वामी

लाजरुम नामक व्यक्ति प्रभु ईशु का एक मित्र था। वह बेथनिया का निवासी था। मरियम और मरथा लाजरुम की बहने थी। एक बार लाजरुम बीमार हुआ। उसकी बहनों प्रभु के पास यह सन्देश पहूंचाया कि आपका मित्र लाजरुम बीमार है।

उनका विचार यह था कि प्रभु तत्काल वहां पहूंचकर लाजरुम को स्वास्थ्य प्रदान करेंगे। क्योंकि नाना प्रकार की बीमारीयों से पीढित लोगेा को वे चंगा करते थेै मगर उनकी इच्छा के अनुसार प्रभु तत्काल नही आये। उन्होंने कहा यह बीमारी मृत्यु के लिए नहीं बल्कि ईश्वर की महिमा के लिए आयी है।वे जहा थे वहां कुछ दिन और रहे। इसके बाद वे लाजरुम के गांव बेथनिया की ओंर अपने शिष्यों के साथ चल पडे। वहां पहूंचने पर उनको पता चला कि चार दिन पहले लाजरुम की मृत्यु हई और वह दफनाया गया।

जब मरथा ने प्रभु को देखा उसने रोते हुए प्रभु से कहा, प्रभु यदि आप यहां होते तो मेरा भाई नहीं मरता। प्रभु ने उससे कहा तुम्हारा भाई जी उठेगा। प्रभु ने कहाः पुनरूत्थान और जीवन में हूं। जो मुझमे विष्वास करता है वह मरने पर भी जीवित रहेगा |
लाजरुम की बहन मरियम भी रोते हुए प्रभु के चरणों में गिर पडी। उस समय वहां बहुत से यहुदी लोग मौजुद थे। जो मरथा और मरियम से मिलने आये थे। कि वे अपनी संवेदना प्रकट कर सके।

प्रभु ने उनसे पुछा कि आप लोगों ने उसे कहां दफनाया है? वे प्रभु को कब्र के पास ले गये। कब्र एक गुुफा थी जिसके मूंह पर एक पत्थर रखा हुआ था। प्रभु ने उनसे कहा पत्थर हटा दो। मृतक की बहन मरथा ने प्रभु से कहा कि अब तो दुर्गंध आती होगी, आज चौथा दिन है।
लेकिन प्रभु के कहने पर लोगो ने पत्थर हटा दिये। प्रभु ने आखें उपर उठाकर कहा-पिता मैं तुझे धन्यवाद देता हूं तुने मेरी सुन ली है। मै जानता था कि तु सदा मेरी सुनता है।

मैने आसपास खडे लोगो के कारण ही ऐसा कहा जिससे वे विष्वास करें कि तुने मुझे भेजा है। इतना कहने के बाद प्रभु ने उंचे स्वर से पुकारा लाजरुम! बाहर निकल आओं। मृतक बाहर निकला

यहुदियों की प्रथा के अनुसार उसके हाथ और पैर पट्टीयों से बधे हए थे और उसके मूंह पर अंगोचा लपेटा हुआ था। प्रभु ने लोगो से कहा इसके बंधन खोल दो इसे चलने फिरने दो, जो लोग वहां आये हुए थे वे यह चमत्कार देखकर दंग रह गये।

ईष्वर जीवन एवं मृत्यु का स्वामी है। वे मानव को जीवन प्रदान करते है। और उसको वापस बुलाते है।
जब एक बच्चा जन्म लेता हैं वह रोता हुआ इस संसार में आता है मगर उस बच्चे के जन्म की खबर सुनकर परिवार के सदस्य, रिष्तेदार एंव अडोस-पडोस के लोग आनन्द मनाते हैं

मगर किसी व्यक्ति की मृत्यु होने पर इसका विपरित संपन्न होता है। जिस व्यक्ति की मृत्यु होती है वह प्रसन्नता का अनुभव करते हुए अपने शाश्वत भवन की ओर चला जाता है।

मगर उसके परिवार के सदस्य रिष्तेदार, एवं अडोस-पडोस के लोग षोक संतृप्त हो जाते है। बिच्चर ने कहा- मृत्यु उस फूल के समान है जो फल उत्पन्न होने के लिए झडता है। मानव का जीवन मृत्यु पर समाप्त नहीं होता।

मृत्यु नये जीवन में प्रवेष करने का द्वार है। इस बात का आधार प्रभु यषु का पुरूत्थान है। प्रभु की मृत्यु कठोर दुख-भोग के बाद तीव्र वेदना में सलीब पर हुई। उन्होनंे मानव जाति के पापों के प्रायष्चित के लिए अपने जीवन की आहुति दी।

यहूदि प्रथा के अनुसार वे दफनाये गये। लेकिन जैसे उन्होंने अपने जीवन काल में कहा था तीसरे दिन उनका पुनरुत्थान हुआ था। पुनरुत्थान के बाद उन्होने अनेक बार अपने षिष्यों को दर्षन दिये।
प्रभु का यह पुनरुत्थान मृत्यु के बाद मानव जाति को प्राप्त होने वाला नवजीवन का आधार है। क्योंकि प्रभु ने कहा कि पुनरुत्थान और जीवन मेैं हू। जो मुझ पर विष्वास करता है वह मरेन पर भी जीवित रह जाता है।

हम अपने जीवन में केवल एक बात निष्चित रूप से बोल सकते हैं यानि हमें मृत्यु का सामना करना पडेगा। मगर यह बात किसी को भी मालूम नहीं हैं कि कब उसकी मृत्यु हो जायेगी।
कारलआन ने एक कविता लिखी है जिसका षिर्षक है- ’केवल एक दिन और जीने के लिएउसका सारांष इस प्रकार हैअगर मेरे जीवन मे एक दिन शेष रहा तो मैं अपने संपूर्ण हृदय से ईष्वर से प्यार करूंगी। 
मैं उस दिन ईष्वर की स्तुति करूंगी। मैं ईष्वर से प्राप्त अनुग्रहों की चर्चा दुसरो के साथ करूंगी। मैं उन क्षणों की याद करूंगी जब-जब मेरे सुख-दुख के दोरान ईष्वर ने मेरा साथ दिया।

मैं उन समस्त कार्यों के प्रति ईष्वर का धन्यवाद करूंगी जो उन्होने मेरे लिए की। मैं उस दिन यह स्वीकार करूंगी कि मैंने जो भी विजय अपने जीवन में हासिल की हैं वे ईष्वर की कृपा से है।

मैं दूसरों को प्रसन्न करने के लिए प्रयास करूंगी। मैं किसी को भी दुख नहीं पहूंचाउंगी। उन लोगों से मैं माफी चाहूंगी जिन लोगों को मैंने दुख पहूंचाया था। उस दिन मैं सबके साथ प्रेम का परिचय दूंगी।

उन लोगों से मैं माफी चाहूंगी जिनको मैंने दुख पहूंचाया था। उस दिन मैं सबके साथ प्रेम का परिचय दूंगी। 

इतना लिखने के बाद कारलआन पूछती हैं हम इस मनोभाव के साथ जीवन के प्रत्येक दिन में आचरण 
क्यों नही करते?


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