Wednesday, December 21, 2016

OSHO Biography, Stories Essay in Hindi - आचार्य रजनीश (ओशो)

OSHO Biography

OSHO Biography, Stories Essay in Hindi - आचार्य रजनीश (ओशो), OSHO Biography, Stories Essay in Hindi - आचार्य रजनीश (ओशो)
OSHO Biography, Stories Essay in Hindi - आचार्य रजनीश (ओशो)

आचार्य रजनीश (ओशो)
                 
भारतवर्ष की पावन भूमि पर अनेकों महापुरुषों ने जन्म लिया है, जिन्होंने अपने ज्ञान द्वारा मानव को अज्ञान रूपी अंधकार से निकालने में काफी सहायता की है तथा भटके हुए लोगों को सही मार्ग पर लाने का सफल प्रयास किया है, ऐसे ही एक महान संत हुए, जिनकी कीर्ति संपूर्ण विश्व में फैली, जिनके दिव्य ज्ञान ने मानव जाति का कल्याण किया, वे संत थे आचार्य रजनीश जो ओशो के नाम से भी संपूर्ण विश्व में प्रसिद्ध हैं

आचार्य रजनीश का जन्म मध्य प्रदेश के एक छोटे-से गांव कचवाड़ा में 11 दिसंबर, 1931 को हुआ था (आचार्य रजनीश धनी परिवार के थे उनके पिता का कपड़ों का व्यापार था वे जैन धर्म का पालन करते थे उन्होंने दर्शन शास्त्र का अध्ययन किया और उसी विषय में प्रथम श्रेणी तथा विशेष योग्यता के साथ एम.. उत्तीर्ण किया अपने कॉलेज जीवन में वे हर प्रतियोगिता में भाग लेते थे खासकर वे वाद-विवाद प्रतियोगिता में भाग लेते थे जिनमें उन्होंने कई पुरस्कार भी जीते

सन् 1958 में वे जबलपुर विश्वविद्यालय में दर्शन शास्त्र के प्राध्यापक के रूप में नियुक्त हुए, लेकिन अधिक समय तक उनका मन पड़ाने में लगा वे आठ वर्ष तक पढ़ाते रहे सन् 1966 में उन्होंने नौकरी त्याग दी वे स्वतंत्र विचारों के व्यक्ति थे, इसके साथ-ही-साथ वे एक अच्छे वक्ता भी थे उन्होंने धार्मिक रूढ़ियों पर कड़ा प्रहार किया

कहते हैं कि उन्हें बिना गुरु के ही आत्मज्ञान प्राप्त हो गया था वे भारत में कई जगहों पर घूमे और उन्होंने अपने भाषणों में समाज में फैली कुरीतियों का जमकर विरोध किया उनका भाषण इतना प्रभावशाली होता था कि श्रोतागण सुनते रह जाते थे उनकी वाणी में वो जादू था कि उनकी कही बात सुनने वाले के जेहन में उतर जाती थी लोग उन्हें भगवान रजनीश कहकर पुकारते थे उनके उपदेशों और भाषणों से भारतवर्ष ही नहीं संपूर्ण विश्व प्रभावित हुआ विदेशों के लोग उनकी ओर आकर्षित होकर उनसे जुड़े

अमेरिका के लोगों की तो उनके प्रति अटूट भक्ति-भावना थी सन् 1966 से सन् 197 तक रजनीश के अनुयायी उन्हें आचार्य कहते थे, परंतु सन् 1970 के बाद वे भगवान रजनीश हो गए नाम के आगे भगवान शब्द जुड़ने के कारण उनकी काफी आलोचना हुई उन्होंने अपनी सफाई में कहा-‘भगवान शब्द का अर्थ ईश्वर नहीं है, प्रत्येक उस व्यक्ति को भगवान कहा जा सकता है, जो उरानंद की अवस्था में पहुंच चुका है

लगातार 18 वर्षों तक भगवान श्री रजनीश कहलाने के बाद 26 दिसंबर, 1988 को उन्होंने यह नाम त्याग दिया और घोषणा कर दी-,इस क्षण से मैं गौतम बुद्ध हो गया हूं मेरे नाम से भगवान शब्द को पूरी तरह हटा दीजिए तीन दिन पश्चात 28 दिसंबर को उन्होंने पुन: अपना नाम परिवर्तित करके मैत्रेय बुद्ध रख दिया जिसका अर्थ उन्होंने मित्र बताया दो दिन पश्चात यानी 3 दिसंबर को उन्होंने मैत्रेय बुद्ध नामक नाम का भी परित्याग कर दिया उगैर घोषणा की कि उन्हें रजनीश जोरबा बुद्ध होना चाहिए जिसका उर्ग्थ उन्होंने पदार्थवाद बताया, परंतु रजनीश एक सप्ताह तक से अधिक समय तक जोरवा बुद्ध नहीं रह पाए

जनवरी 1989 को उन्होंने अपने रखे सभी नामों का त्याग किया उगैर लगभग एक महीने बाद एक नया नाम धारण किया जो सदा-सदा के लिए अमर हो गया वह नाम था-‘ओशो


आचार्य रजनीश ने मुंबई और पूना में अपने आश्रम बनवाए उन्होंने 1981 में अपने शिष्यों सहित अमेरिका जाकर रजनी-पुरम की स्थापना की, लेकिन अमेरिका सरकार ने उनके कुछेक शिष्यों को गैर-कानूनी कार्यों के कारण उन्हें वहां से जाने पर विवश कर दिया उसके बाद आचार्य रजनीश भारत लौट उगए और फिर यही उन्होंने अपने अनुयायियों को शिक्षा दी 19 जनवरी 1990 को उगचार्य रजनीश ने अंतिम समाधि ले ली उनके अनुयायियों को इस समाचार से काफी दुख हुउग ओशो तो चले गए, परंतु उनके द्वारा दिए ज्ञान की राह पर चलकर उगज भी मानव जीवन को सफल बनाया जा सकता है

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