Sheikh Chilli Stories in Hindi
Sheikh Chilli Stories in Hindi PDF Dream
of Shekh Chilli, Sheikh Chilli Stories
in Hindi PDF Dream of Shekh Chilli
शेखचिल्ली
का
स्पप्न (Dream
of Shekh Chilli)
शेखचिल्ली की अम्मी उसे हमेशा समझाती थी कि कुछ काम-धंधा किया कर, यूं खाली बैठने से कुछ हासिल नहीं होने वाला। एक दिन दोनों माँ-बेटे खाना खा रहे थे। ’बटे’! अब मैं बुढी हो गई हूं और इस बुढापे में मुझसे काम नहीे होता। अब तुम कोई काम-धंधा शुरू करो। अम्मी ने निवाला मूंह में डालते हुए कहा। क्या काम करु ? शेखचिल्ली ने
पुछा।
कोई भी काम-धंधा करो। पर अम्मी मैंने तो आज तक कोई काम किया ही नहीं। भला मुझे कौन काम पर रखेगा ? काम तो करना पडेगा बेटे, क्योंकि बिना काम किये गुजारा नही होगा। आप ठीक कहती हैं, मैं काम की तलाश में जाता हूं। इतना कहकर शेखचिल्ली घर
से निकल पडा।
शेखचिल्ली मस्ती
में झूमता हुआ चला जा रहा था। उसके दिमाग में नौकरी और मजदूरी के अलावा कौई दूसरी बात नहीं थी। रस्ते में उसे एक व्यक्ति मिला जो अंडों का झाबा सिर पर लिए परेशान-सा लग रहा था।
बोझ के मारे उसके कदम लडखडा रहे थै। उसने शेखचिल्ली को देखते ही कहा-ऐं भाई! काम करोगे? बिल्कुल करूंगा, बंदा तो कमा-धंधे की तलाश में ही है। वह बोला। तो मेरा ये झाबा ले चलो। इसमें अंडे है, टूट न जाऐं।
तुम इसे मेरे घर तक पहूंचा दोगे तो मैं तुम्हे दो अंडे दूंगा।
सिर्फ दो अंडे! शेखचिल्ली आश्चर्यचकित होकर बोला। हां, कम नहीं है, जरा सोचो तो सही, दो अंडों से तो इंसान की तकदीर बदल सकती है और मेरा घर भी ज्यादा दूर नहीं है ठीक है, मैं ले चलता हूं। और उसने अंडों का झाबा अपने सिर पर रख लिया। दो अंडों से तकदीर बदलने की बात गहराई तक उसे दिमाग में बैठ गई थी।
शेखचिल्ली सेठ के साथ-साथ चला जा रहा था तभी उसके दिमाग ने सपनों के समुद्र में गोता लगाना शुरू कर दिया। वह मन-ही-मन सोच रहा था, यह सेठ मुझे दो अंडे देगा। इन दो अंडों से दो चूजे निकलेंगे।
चूजे बडे होंगे। एक मुर्गी और एक मुर्गा होगा। मुर्गी रोज अंडे देगी जिनसे बच्चे बनेंगे। कुछ दिनों में बहुत सी मुर्गियां हो जायेगी। वे सभी अंडे दिया करेगी। अंडे बेचने से बहुत आमदानी होगी। फिर तो मेरे पास पैसा-ही-पैसा होगा। मैं शानदारर महल बनवाऊंगा।
भैंस खरीदकर डेरी बनाउंगा। दूध बेचूंगा। दूध और अंडों का थोक व्यापारी बन जाउंगा। इस प्रकार पूरे इलाके में मेरी धाक जम जाएगी। सब मेरा माल पसंद करेंगे और खरीदेंगे। मैं काफी दौलतमंद बन जाऊंगा।
जब मेरे पास दौलत हो जाएगी तो बडे-बडे लोग अपनी बेटियों के रिश्ते लेकर आऐंगे। मैं किसी नवाब की बेटी से शादी करूंगा। मां भी गर्व करेंगी कि कैसा मेहनती और अक्लमंद बेटा पैदा किया है।
जब शादी होगी तो बच्चे भी जरूर होंगे। बच्चे बारह से कम नहीं होने चाहिए। पडोसी के दस बच्चे है। उससे ज्यादा होने इसलिए जरूरी है कि कभी झगडा हो गया तो मेरे बच्चे पिटेंगे नहीं, उसके बच्चों को ही पीटकर आएंगे।
लेकिन पडोसी के बच्चे आपस में लडते हैं तो क्या मेरे बच्चे भी आपस में लडेंगे ? जरूरी है कि लडेंगे। जब लडेंगे तो रोएंगे, शोर करेंगे, मेरे पास एक-दूसरे की शिकायत लेकर आएंगे। मै परेशान भी हा जाऊंगा।
तब मेरा वह भी खराब हो भी जाएगा…. वह जो अक्सर बडे लोगों का खराब होता है, यानी वो ही जो बडे आदमी कहते हैं कि उसका वो बिगड गया।
मैं भी बडा आदमी बन जाऊंगा उस वक्त इसलिए मेरा भी वो खराब हो जाएगा, बच्चों के शोर, झगडे और मेरे पास शिकायत लेकर आने से, लेकिन वो जो होता हैं उसका नाम तो याद नहीं आता। क्या इस सेठ से पूंछ लूं।
नही-नहीं, मैं इतना बडा आदमी हो गया हूं तो क्या एक मामूली शब्द को ओरों से पूछूंगा? नहीं पुछूंगा। याद करता
हूं। हां, याद
आया-मूड। जब
बच्चे शोर करते
आएंगे- अब्बा,
सुल्तान ने मेरा
कुर्ता फाड दिया।
अब्बाजान रफीक ने
मेरी आखों में
संतरें के छिलके
का रस निचोड
दिया। जब उसने
जोर से उछलकर
स्वप्न में ही
बच्चों को चुप
होने को कहा
तो उसका पैर
रास्ते में पडें
पत्थर पर जा
पडा जिससे
वह धडाम से
झाबे समेत जमीन
पर जा गिरा
और सारे अंडे
फुट गये।
’ओ
बदमाश’! तुमने
हमरो इत्तो
बडो नुकसान
कर दियो।
मेरे सौ रूपये
के अंडे फोड
दिए।
इतना कहकर वह
सेठ माथा पकडकर
बैठ गया। सेठ!
तुम्हारा तो सौ
रूपये का ही
नुकसान हुआ है।
सौं रूपये
तो तुम कमा
ही लोगे पर
मेरा तो बहुत
बडा नुकसान
हो गया है।
मेरा सारा परिवार और व्यापार
ही खत्म हो
गया है।
मेरा बहुत बडा
मुर्गी फार्म,
बहुत बडा डेरी
फार्म, महल और
एक दर्जन
बच्चे-हाय !
रहीम! मेरे बच्चे।
शेखचिल्ली दहाडे
मारकर रो रहा
था, पागलो
की भांति
छाती पीट-पीटकर
अपने बाल नोंच
रहा था। सेठ
ने जब उसका
यह हाल देखा
तो अपने नुकसान को भुलकर
वह वहां से
रफुचक्कर हो गया।
कुछ देर बाद
षेखजी घर पहूंचे, यार-दोस्तों
से अपने हुए
नुकसान का जिक्र
किया तो दोस्तों ने उसकी खूब
हंसी उडाई।
यह बात फैलते-फैलते
बडों तक पहूंची तो वे भी
ठहाका लगाकर
हंस पडे। उसके
बाद तो मूर्खों की दुनिया
में एक और
नया नाम जुड
गया-’शेखचिल्ली।’
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