Wednesday, December 21, 2016

Munshi Premchand Biography, Stories Essay in Hindi - मुंशी प्रेमचंद

Munshi Premchand Biography, Stories Essay in Hindi - मुंशी प्रेमचंद Munshi Premchand Biography

Munshi Premchand Biography, Stories Essay in Hindi - मुंशी प्रेमचंद , Munshi Premchand Biography, Stories Essay in Hindi - मुंशी प्रेमचंद

मुंशी प्रेमचंद

मुंशी प्रेमचंद कोउपन्यास सम्राट’, ‘कलम का सिपाही ‘, ‘कलम का जादूगरऔर इसी प्रकार के अनेक नामों से पुकारा जाता है, जो कि सर्वथा उचित है लाखोंकरोड़ों पाठकों के दिलों पर राज करने वाले महान कथासाहित्यकार मुंशी प्रेमचंद आज हमारे बीच में नहीं हैं, मगर अपने कथासाहित्य में पात्रों के बीच आज भी बोलते नजर आते हैं वास्तव में अपने उपन्यासों और कहानियों से वे अमर हो गए

प्रेमचंद का जन्म 31 जुलाई, 1880 को बनारस शहर से चार मील दूर लमही नामक गांव में हुआ था उनके पिता मुंशी अजायब लाल एक डाकमुंशी थे घर पर साधारण खानेपीने, पहननेओढ़ने की तंगी तो थी, पर इतना शायद कभी हो पाया कि निश्चिंत हुआ जा सकता प्रेमचंद का वास्तविक नाम धनपत था सबसे पहले इन्होंने उर्दू में नवाब राय के नाम से लिखना शुरू किया

सन् 1910 में मुंशीजी की पुस्तकसोजेवतनब्रिटिश सरकार द्वारा जब्त करके जला दी गई, किंतु 
उनकी लेखनी झुकी नहीं और उन्होंने प्रेमचंद के उपनाम से लिखना शुरू कर दिया प्रेमचंद जितने महान लेखक थे, आदमी उतने ही सीधे और सरल थे निश्छल, विनयशील और वैसी ही सीधीसादी उनकी जीवनशैली थी सोलहों आने वैसी ही, जैसी किसी भी दफ्तर के बाबू या स्कूल के मास्टर की होती है सवेरे नौदस बजे घर से सीधे अपने काम पर और शाम को पांच बजे सीधे अपने घर

अपने ही जैसे दोचार संगीसाथियों और अपने परिवार की छोटीसी दुनिया ही उनकी कुल दुनिया थी, जिसमें घर का बाजारहाट भी है बच्चों की सर्दीखांसीपरिवार की दांता किलकिल और उन सबके बीच समर्पित भाव से किया गया इतना उत्कृष्ट लेखन, जो सचमुच आश्चर्यजनकसा लगता है जब इस बात की ओर ध्यान जाता है कि इतना सब जो लिखा गया है, वह लगभग सारी उम्र, सातआठ घंटे की कोईकोई नौकरी करते हुए लिखा गया है तो उनकी साहित्यसाधना की लग्न और कर्मठता देखकर हैरानी होती है

मजे से पूरे समय तक लिख सकें, इतनी सुविधा भी वे कभी जुटा पाए उनका जीवन शुरू से लेकर आखिर तक अभाव और जीवनसंघर्ष की एक ही गाथा है उन्होंने एक स्थान पर अपने बारे में लिखा था– ‘मेरा जीवन एक सपाट, समतल मैदान है, जिसमें कहींकहीं गड्ढे तो हैं, पर टीलों, पर्वतों, घने जंगलों, गहरी घाटियों और खंडहरों का स्थान नहीं है

जो सज्जन पहाड़ों की सैर के शौकीन हैं, उन्हें तो यहां निराशा ही होगी जीवनपरिचय के संदर्भ में एक बात जो यथास्थान नहीं पाई, वह यह कि प्रेमचंद ने शिवरात्रि के दिन सन् 196 में, लगभग उन्हीं दिनों जब वह शायद अपना छोटा उपन्यासप्रेमा’ (उर्दू मेंहमखुर्माहमसवाब ‘) हिंदी में लिख रहे थे (जिसका प्रकाशन सन् 1907 में हुआ) जिसका नायक एक विधवा लड़की से विवाह करता है, उन्होंने स्वयं एक विधवा लड़की शिवरानी देवी से विवाह किया

शिवरानी देवी बहुत सच्ची, अक्खड़, निडर, अहंकार की सीमा तक स्वाभिमानी, दबंग और शासनप्रिय महिला थी प्रेमचंद जैसे खुद कोमल स्वभाव के आदमी थे, उन्हें शायद ऐसी ही जीवनसहचरी की जरूरत थी और शायद इसीलिए प्रेमचंद के जीवन में उनकी बड़ी महत्त्वपूर्ण भूमिका रही जीवन में अनेक संघर्षों को तय करता हुआ कथाजगत का यह रोशन सितारा 8 अक्टूबर, 1936 को अपना असीमित प्रकाश यहीं छोड्कर अस्त हो गया, मगर उनके साहित्य की रोशनी से आज भी संपूर्ण विश्व का साहित्य जगमगा रहा है

मुंशी प्रेमचंद ने उपन्यासों के साथसाथ छोटीबड़ी लगभग 300 कहानियां लिखी है इन कहानियों में देश, समाज और ग्राम्य जीवन के अनगिनत रंग अपनी भरपूर छटा के साथ बिखरे हुए हैं इन आभामय रंगों में जो भी पाठक डूबता है, वह भारतीय समाज के बड़ी निकटता से दर्शन कर लेता है


No comments:

Post a Comment

Comments system

Disqus Shortname