Munshi Premchand Biography, Stories
Essay in Hindi - मुंशी
प्रेमचंद , Munshi
Premchand Biography, Stories Essay in Hindi - मुंशी
प्रेमचंद
मुंशी
प्रेमचंद
मुंशी प्रेमचंद को ‘उपन्यास सम्राट’, ‘कलम का सिपाही ‘, ‘कलम का जादूगर’ और इसी प्रकार के अनेक नामों से पुकारा जाता है, जो कि सर्वथा उचित है । लाखों–करोड़ों पाठकों के दिलों पर राज करने वाले महान कथा–साहित्यकार मुंशी प्रेमचंद आज हमारे बीच में नहीं हैं, मगर अपने कथा–साहित्य में पात्रों के बीच आज भी बोलते नजर आते हैं । वास्तव
में अपने उपन्यासों और कहानियों से वे अमर हो गए ।
प्रेमचंद का जन्म 31 जुलाई, 1880 को बनारस शहर से चार मील दूर लमही नामक गांव में हुआ था । उनके
पिता मुंशी अजायब लाल एक डाक–मुंशी थे । घर
पर साधारण खाने–पीने, पहनने–ओढ़ने की तंगी तो न थी,
पर इतना शायद कभी न हो
पाया कि निश्चिंत हुआ जा सकता । प्रेमचंद
का वास्तविक नाम धनपत था । सबसे
पहले इन्होंने उर्दू में नवाब राय के नाम से लिखना शुरू किया ।
सन् 1910 में मुंशीजी की पुस्तक ‘सोजे–वतन’ ब्रिटिश सरकार द्वारा जब्त करके जला दी गई, किंतु
उनकी लेखनी झुकी नहीं और उन्होंने प्रेमचंद के उपनाम से लिखना शुरू कर दिया । प्रेमचंद
जितने महान लेखक थे, आदमी उतने ही सीधे और सरल थे । निश्छल,
विनयशील और वैसी ही सीधी–सादी उनकी जीवन–शैली थी । सोलहों
आने वैसी ही, जैसी किसी भी दफ्तर के बाबू या स्कूल के मास्टर की होती है । सवेरे
नौ–दस बजे घर से सीधे अपने काम पर और शाम को पांच बजे सीधे अपने घर ।
अपने ही जैसे दो–चार संगी–साथियों और अपने परिवार की छोटी–सी दुनिया ही उनकी कुल दुनिया थी, जिसमें घर का बाजार–हाट भी है । बच्चों
की सर्दी–खांसी, परिवार की दांता किलकिल और उन सबके बीच समर्पित भाव से किया गया इतना उत्कृष्ट लेखन, जो सचमुच आश्चर्यजनक–सा लगता है । जब
इस बात की ओर ध्यान जाता है कि इतना सब जो लिखा गया है, वह लगभग सारी उम्र, सात–आठ घंटे की कोई–न–कोई
नौकरी करते हुए लिखा गया है तो उनकी साहित्य–साधना की लग्न और कर्मठता देखकर हैरानी होती है ।
मजे से पूरे समय तक लिख सकें, इतनी सुविधा भी वे कभी न जुटा
पाए । उनका
जीवन शुरू से लेकर आखिर तक अभाव और जीवन–संघर्ष की एक ही गाथा है । उन्होंने
एक स्थान पर अपने बारे में लिखा था– ‘मेरा जीवन एक सपाट, समतल मैदान है, जिसमें कहीं–कहीं गड्ढे तो हैं, पर टीलों, पर्वतों, घने जंगलों, गहरी घाटियों और खंडहरों का स्थान नहीं है ।
जो सज्जन पहाड़ों की सैर के शौकीन हैं, उन्हें तो यहां निराशा ही होगी । ‘ जीवन–परिचय के संदर्भ में एक बात जो यथास्थान नहीं आ पाई,
वह यह कि प्रेमचंद ने शिवरात्रि के दिन सन् 19०6 में,
लगभग उन्हीं दिनों जब वह शायद अपना छोटा उपन्यास ‘प्रेमा’ (उर्दू में ‘हमखुर्मा–ओ–हमसवाब
‘) हिंदी में लिख रहे थे (जिसका प्रकाशन सन् 1907 में हुआ) जिसका
नायक एक विधवा
लड़की से विवाह
करता है, उन्होंने स्वयं एक विधवा
लड़की शिवरानी
देवी से विवाह
किया ।
शिवरानी देवी बहुत
सच्ची, अक्खड़,
निडर, अहंकार
की सीमा तक
स्वाभिमानी, दबंग और
शासनप्रिय महिला
थी । प्रेमचंद जैसे खुद कोमल
स्वभाव के आदमी
थे, उन्हें
शायद ऐसी ही
जीवन–सहचरी
की जरूरत
थी और शायद
इसीलिए प्रेमचंद
के जीवन में
उनकी बड़ी महत्त्वपूर्ण भूमिका रही ।
जीवन में अनेक
संघर्षों को तय
करता हुआ कथा–जगत
का यह रोशन
सितारा 8 अक्टूबर,
1936 को अपना असीमित प्रकाश यहीं छोड्कर
अस्त हो गया,
मगर उनके साहित्य की रोशनी
से आज भी
संपूर्ण विश्व
का साहित्य
जगमगा रहा है
।
मुंशी प्रेमचंद
ने उपन्यासों
के साथ–साथ
छोटी–बड़ी लगभग
300 कहानियां लिखी है
। इन कहानियों में देश, समाज
और ग्राम्य
जीवन के अनगिनत रंग अपनी भरपूर
छटा के साथ
बिखरे हुए हैं
। इन आभामय
रंगों में जो
भी पाठक डूबता
है, वह भारतीय समाज के बड़ी
निकटता से दर्शन
कर लेता है
।
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